वागड़ में बना 800 साल पुराना सूर्य मंदिर के अब कुछ अवशेष ही बचे हैं
इसी सूर्य मंदिर के नाम पर गांव का नाम सूरजगांव रखा गया था
डूंगरपुर। खड़गदा-भीलूड़ा रोड से करीब चार किलोमीटर दूर पहाड़ी पर बसे हुए सूरजगांव में नदी के किनारे मौजूद एक प्राचीन ऐतिहासिक महत्व का मंदिर बदहाली के आंसू बहा रहा है। पूरी तरह से जर्जर हो चुका इस मंदिर के अब खंडहर ही माैजूद हैं। गांव के लोगों का कहना है कि प्राचीन समय में वागड़ क्षेत्र का इकलौता सूर्य मंदिर था, जिसके कलात्मक अवशेष आज भी यहां देखे जा सकते हैं। माना जाता है कि इसी मंदिर के आधार पर इस गांव का नाम भी सूरजगांव पड़ा था। वर्तमान में इस मंदिर में किसी भी देवी देवता की कोई मूर्ति नहीं है। बस मंदिर का जर्जर ढांचा खड़ा है।
बस अब कोठरीनुमा ढांचा ही खड़ा है
मंदिर के आगे के भाग में कुछ साल पहले तक आठ स्तंभों पर बने हुए सभा मंडप पर एक गुंबद था, लेकिन अब कुछेक क्षतिग्रस्त स्तंभ मलबे के ढेर में पड़े हुए हैं। नदी के किनारे टेकरी पर एक छोटी सी कोठरीनुमा मंदिर का ढांचा खड़ा है। कोठरी के अंदर ठीक सामने और उत्तर व दक्षिण की दीवारों पर देवी-देवताओं की प्रतिमाएं होने के निशान भी मौजूद हैं। बताया जाता है कि यह सूर्य मंदिर का निर्माण लगभग 800 साल पूर्व किया गया। माना जाता है कि मंदिर बनने के बाद इस गांव का नाम सूरजगांव रखा गया था।
मान्यता: इस रानी ने कराया था मंदिर का निर्माण
सूरजगांव में स्थित सूर्य मंदिर का इतिहास तो नहीं मिलता, लेकिन इसके निर्माण के बारे में किंवदंती और लोगों में मान्यता प्रचलित है। इसके अनुसार माना जाता है कि पूर्व में जब वागड़ की राजधानी गलियाकोट थी। उस समय सूरज देवी नामक रानी ने उस रास्ते से गुजरते समय नदी के तट पर इस मंदिर का निर्माण कराया था। लोग बताते हैं कि जब रानी इस स्थान से गुजर रही थी, उस समय सूर्याेदय हुआ, इसलिए उसने यहां सूर्य मंदिर का निर्माण कराया। कालांतर में गांव का नाम सूरजगांव पड़ा।
ये कहना है पुरातत्वविद का…
पुरातत्वविद डॉक्टर रविंद्र पंड्या का मानना है कि 800 साल पहले सूर्यवंशी राजाओं के कार्यकाल में सूर्य मंदिर का निर्माण और सूरजगांव की स्थापना हुई होगी। यह मंदिर 12 वीं सदी में बना प्रतीत होता है। उन्होंने मंदिर के आसपास के टीले के उत्खनन की आवश्यकता जताते हुए बताया कि इससे मंदिर और गांव से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी सामने आ सकती है। बहरहाल इस मंदिर के भग्नावशेष मोरन नदी और गांव के बीच की एक छोटी मगरी पर मौजूद है।
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