वागड़ के एक किसान का कमाल: 11 बीघा बंजर जमीन पर ऑर्गेनिक खेती कर चार गुना उपज बढ़ा दी
ड्रैगन फ्रूट को भी खुद से खाद तैयार कर उगा दिया
बांसवाड़ा। बांसवाड़ा के संभाग बनने के बाद यहां तरक्की और उम्मीदों के रास्ते और भी खुलते जा रहे हैं। खासकर खेती की बात करें तो यहां किसान कई तरह के प्रयोग भी करते रहते हैं। यहां के किसान उन्नत और आधुनिक खेती पर विशेष जोर देते हैं। इसी क्रम में आज आपको बताने जा रहे हैं यहां के एक खास किसान के बारे में जो परंपरागत खेती से हटकर कुछ अलग कर रहे हैं। ये हैं बांसवाड़ा के डाॅ. भवानी खंडेलवाल। इनका दावा है कि वह जीरो प्रतिशत खर्च पर चार गुना तक आमदनी पा सकते हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने खुद की। उन्होंने इसके लिए उपजाऊ खेती नहीं बल्कि 11 बीघा बंजर जमीन से इसकी शुरुआत की।
11 बीघा बंजर जमीन से शुरुआत की
भवानी खंडेलवाल ने बताया कि पालाेदा के पास उन्होंने 11 बीघा जमीन पर बागवानी 10 साल पहले शुरू की। यह जमीन काफी पथरीली थी। इसी वजह से उस पर फसल या पेड़-पाैधाें का उगना मुश्किल था। वहीं जमीन में कई प्रकार के तत्वों की भी कमी थी। लेकिन उन्होंने अथर्वेद के अनुसार खेती करना शुरू किया। इसके अंतर्गत जमीन काे पोषण देने वाले तत्वों के लिए गाै मूत्र, पत्थरों और खरपतवार से बनाई खाद का इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने पांच साल पहले इसका प्रयोग अपने फाॅर्म पर उगाए पेड़ाें पर किया। चार साल में ही सभी पेड़ फल देने लग गए और तीन गुना तक उपज बढ़ गई।
बंजर जमीन पर सबसे पहले ड्रैगन फल उगा दिया
डाॅ. खंडेलवाल बताते हैं कि वागड़ में काेई भी ड्रैगन फल की खेती नहीं करता है। इसमें वैसे किसानों की दिलचस्पी भी नहीं है। इसका मुख्य कारण है- यहां का तापमान 45 डिग्री से ज्यादा हाे जाता है। इससे ड्रैगन फल के पौैधे खत्म हाे जाते हैं। लेकिन उन्होंने ऑर्गेनिक खेती कर ड्रैगन फल का पूरा बागान ही खड़ा कर दिया। वे बताते हैं कि वे चार प्रकार के ड्रैगन फल उगाते हैं। इसके अलावा चंदन, किन्नू, सीताफल, माैसमी, नींबू, कटहल, काजू, बादाम आदि के पौैधे भी उगाते हैं। सभी पौैधे विपरीत माैसम में भी दोगुना उत्पादन देन रहे हैं।
इस तरह आप भी तैयार कर सकते हैं खाद
डाॅ. भवानी खंडेलवाल ने बताया कि जमीन के लिए जरूरी पाेषकतत्वाें के लिए उन्होंने 21 तरह के अलग-अलग पत्थर और 21 तरह की अलग-अलग पौैधे की पत्तियां ली। इन सभी काे अलग-अलग एक प्लास्टिक टैंक में डाला और थाेड़ा सा गाै मूत्र पानी में मिलाकर सड़ने के लिए रख दिया। करीब एक माह तक सड़ने के बाद जब उस पानी का फसलाें पर छिड़काव किया। क्योंकि वह खाद बन चुका था। इस तरह से उन्होंने पूरी ऑर्गेनिक खेती की। वे बताते हैं कि उनके पाैधाें पर इस तरह तैयार वेस्ट डी कंपोजर से न ताे कीट लगते हैं और न ही काेई जानवर उन्हें खाता है। सबसे बड़ा फायदा यह है कि ऑर्गेनिक खेती से किसानों की उपज बढ़ जाती है और खर्च घट जाता है। इससे आमदनी दोगुनी हाे जाती है।
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