राजस्थान का एक ऐसा जिला जो सौ द्वीपों का शहर और चेरापूंजी कहलाता है
बांसवाड़ा राजस्थान का एक प्रमुख जिला। नाम से ही प्रतीत होता है कि यहां बांस के पेड़ प्रचुर मात्रा में मिलते होंगे। तो यह बिल्कुल सच है कि यहां बांस के पेड़ कभी खूब हुआ करते थे। आपको यह जानकर थोड़ा आश्चर्य हो सकता है कि बांसवाड़ा को राजस्थान का चेरापूंजी भी कहते हैं।दरसअल, यह राज्य का सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र है। मानसून का प्रवेश द्वार भी बांसवाड़ा को ही कहा जाता है। इसकी सीमा गुजरात और राजस्थान दोनों से लगती है। मध्य प्रदेश से होकर आने वाली माही नदी यहां का प्रमुख आकर्षण है। यही नदी बासंवाड़ा जिले की जीवन वाहिनी है।
बांसवाड़ा की नींव महारावल जगमाल सिंह ने डाली थी। इस क्षेत्र में बांस पेड़ के प्रचुरता में पाए जाने और बांसिया भील द्वारा बसाये जाने के कारण ही इस क्षेत्र का नाम बांसवाड़ा पड़ा। बांसवाड़ा चूंकि के लगभग मध्य में से कर्क रेखा गुजरती है। इसी कारण इसका अधिकांश भाग उष्ण कटिबंध में आता है।एक विशेष बात जोकि कम ही लोग जानते हैं, बांसवाड़ा को ‘सौ द्वीपों का शहर’ के नाम से भी प्रसिद्ध है। माही डैम पर बने टापुओं की वजह से इसे ऐसा कहा जाता है। राज्य का सबसे लंबा बांध माही बजाज सागर बांध इसी माही नदी पर स्थित है। जिसकी कुल लंबाई 3109 मीटर है। यह पर्यटकों के लिए हमेशा से आकर्षक का केंद्र रहा है।
वहीं, माही बजाज सागर परियोजना के तहत माही नदी पर कई बांध और नहरें बनाई गई हैं। जब यह डैम पूरी तरह से भर जाता है और इसके गेट खोले जाते हैं तो इसका नजारा और भी अद्भुत होता है। अगली बार जब भी आप बांसवाड़ा घूमने आएं तो माही डैम जरूर आएं। वहीं, आनंद सागर झील भी यहां की काफी प्रसिद्ध झील है।इस झील का निर्माण महारानी जगमाल सिंह की रानी लंची बाई ने करवाया था। यह झील पवित्र कल्पवृक्ष के पेड़ों से घिरा हुआ है। बांसवाड़ा में खनिज संपदा भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
इसके थोड़ा इतिहास की बात करें तो डूंगरपुर और बांसवाड़ा दोनों को संयुक्त रूप से प्राचीनकाल में वागड़ प्रदेश के नाम से जाना जाता था। प्राचीन काल में यह प्रदेश वाग्वर प्रदेश यानी पुष्प प्रदेश के नाम से भी जाना जाता था। इसकी राजधानी आथूर्ना थी एवं इस पर परमार का शासन था। बांसवाड़ा जिला एक जनजाति बहुल जिला है। 1948 में बांसवाड़ा रियासत का राजस्थान में विलय हो गया था। बताया जाता है कि गौतम बुद्ध अपने जीवन के अंतिम वर्ष में इसी जगह से गुजरे थे।
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